भारतीय अर्थव्यवस्था में मजबूती के संकेत
आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 ने भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए सकारात्मक तस्वीर पेश की है, जिसमें बताया गया है कि भारत की अर्थव्यवस्था 2026 तक 6.3% से 6.8% की दर से बढ़ सकती है। यह सर्वेक्षण वित्त वर्ष 25 की पहली छमाही में 6.2% की आर्थिक वृद्धि दर्शाता है, जो वैश्विक अस्थिरताओं के बावजूद भारत की आर्थिक नींव की मजबूती को रेखांकित करता है। भारत की अर्थव्यवस्था ने वित्त वर्ष 25 के पहले क्वार्टर में 8.3% की उच्च वृद्धि दर्ज की, हालांकि वैश्विक मांग में कमी और निर्यात में गिरावट के चलते यह वृद्धि दूसरे क्वार्टर में 5.4% तक धीमी हो गई।
वैश्विक बाजार में चुनौतियां
आर्थिक सर्वेक्षण ने यह भी चेतावनी दी है कि वैश्वीकरण के घटने से भारत की विकास यात्रा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। अंतरराष्ट्रीय व्यापार में प्रतिबंध और कमजोर वैश्विक बाजारों के कारण पहले से ही निर्यात में कमी देखी जा रही है। इसके अतिरिक्त भारी मानसून की बारिश ने भारत के खनन, निर्माण और कुछ विनिर्माण क्षेत्रों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। प्रमुख त्योहारों के समय पर पड़ने से आर्थिक गतिविधियाँ भी प्रभावित हुई हैं, जिससे आर्थिक वृद्धि में कमी आई है।
सेवा और कृषि क्षेत्रों की भूमिका
भारत के सेवा और कृषि क्षेत्र ने इस अवधि में अच्छा प्रदर्शन किया है। खासकर सेवा क्षेत्र ने विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, जो कि अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में स्थिरता बनाए रखने में सहायक रहा है। इस क्षेत्र की वृद्धि से श्रम बाजार में सुधार करने की संभावना है, जिससे रोजगार के अवसर उत्पन्न होंगे। हालांकि, सेवा क्षेत्र में नवाचारों और अद्यतनों के लाभ को सतत रखने के लिए वाणिज्यिक रणनीतियों को मजबूत करने की आवश्यकता है।
वैश्विक आर्थिक संबंध और भारत की स्थिति
भारतीय शेयर बाजार में भारत की वैश्विक हिस्सेदारी में वृद्धि इस बात का संकेत है कि भारत का अंतरराष्ट्रीय वित्त में बढ़ता असर प्रमुख भूमिका अदा कर रहा है। 2023 में वैश्विक आईपीओ सूचियों में भारत की हिस्सेदारी 17% थी, जो 2024 में 30% तक पहुँची, यह भारत की अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण उपलब्धि है। भारतीय कंपनियों द्वारा शेयर बाजार में इस प्रकार की हिस्सेदारी ने विदेशी निवेशकों के विश्वास को और मजबूत किया है।
2030 तक भारत के विकास के लक्ष्य
भारत का लक्ष्य 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने का है, जिसके लिए उसे अगले 20 वर्षों तक 8% की वार्षिक वृद्धि दर की आवश्यकता होगी। इस दिशा में सरकार द्वारा उठाए गए कदम, जैसे श्रम सुधार और व्यवसायी जीवनशैली में सुधार, महत्वपूर्ण हैं। श्रम सुधारों ने व्यापार की स्थिति और श्रमिकों के अधिकारों में सुधार किया है, जिससे रोजगार के नए अवसर पैदा हुए हैं और सतत् विकास को बढ़ावा मिला है।
ग्रामीण मांग में संभावित वृद्धि
कृषि में सुधार और खाद्य पदार्थों की कीमतों में स्थिरता के चलते ग्रामीण मांग में वृद्धि की भविष्यवाणी की गई है। हालांकि, वैश्विक चुनौतियों जैसे व्यापार विवाद और बढ़ती वस्तु कीमतें अभी भी वृद्धि पर प्रभाव डाल सकती हैं। कृषि क्षेत्र में सुधार और नौजवान कार्यबल के लाभों को भुनाने से भारत को अपने विकास के लक्ष्यों की दिशा में बढ़ने में मदद मिल सकती है।
विदेशी मुद्रा प्रवाह का महत्व
भारत की अर्थव्यवस्था में प्रवासी भारतीयों द्वारा भेजी गई धनराशि महत्वपूर्ण साबित हो रही है। 2024 के दूसरे क्वार्टर में यह रकम 28.1 अरब डॉलर थी, जो 2025 के दूसरे क्वार्टर में बढ़कर 31.9 अरब डॉलर हो गई। प्रवासी भारतीयों का यह योगदान न केवल अर्थव्यवस्था को मज़बूत करता है बल्कि इसे एक स्थिरता प्रदान करता है जो कि आर्थिक विकास के लिए आवश्यक होता है।
उच्च विद्युत मूल्य और आर्थिक विकास
मुख्य आर्थिक सलाहकार ने आर्थिक विकास के लिए रोजगार सृजन और भारत में उच्च विद्युत मूल्य के मुद्दे को भी उठाया है। भारतीय उद्योगों के लिए उच्च विद्युत मूल्य एक प्रमुख चुनौती है, जो पड़ोसी देश जैसे वियतनाम और बांग्लादेश से प्रतिस्पर्धा में कमजोर बनाता है। इस दिशा में सुधार के कदम भारत के औद्योगिक विकास और विदेशी निवेश को आकर्षित करने में सहायक साबित हो सकते हैं।
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