हाल ही में Zoho के सीईओ श्रीधर वेम्बु ने एक प्रमुख भारतीय कंपनी पर कठोर टिप्पणी करते हुए कहा कि अगर आपकी कंपनी के पास $1 बिलियन नकद है और आप 12-13% कर्मचारियों की छंटनी कर रहे हैं, तो इसे केवल 'नग्न लालच' ही कहा जा सकता है। इसका सीधा संकेत Freshworks की ओर किया गया था, जिसने 660 कर्मचारियों की छंटनी की घोषणा की है। यह छंटनी ऐसे समय में की गई है जब कंपनी की वृद्धि दर काफी सकारात्मक बनी हुई है, जिससे इस प्रकार के फैसले की आलोचना और भी विवादास्पद हो जाती है।
श्रीधर वेम्बु ने सवाल उठाया कि जिस $400 मिलियन स्टॉक बायबैक की योजना बनाई गई थी, क्या उसे उन कर्मचारियों के लिए नए अवसरों के सृजन में नहीं बदला जा सकता था जिन्हें अब कंपनी से बाहर कर दिया गया है? वेम्बु का मानना है कि ऐसी रणनीतियाँ केवल कर्मचारियों की निष्ठा को खत्म करती हैं और कंपनियों में शेयरधारकों को कर्मचारियों से अधिक महत्व देने का एक खतरा है। यह एक ऐसी प्रवृत्ति है जिसे वेम्बु अमेरिकी कॉर्पोरेट दुनिया से भारत में आते हुए देख रहे हैं।
वेम्बु ने इस बात पर बल दिया कि Zoho निजी स्वामित्व में ही बनी रही ताकि ग्राहकों और कर्मचारियों को प्राथमिकता दी जा सके, न कि शेयरधारकों को। इस तरीक़े से उनका मानना है कि कंपनी एक बेहतर कार्यशील वातावरण सुनिश्चित कर सकती है, जिसमें कर्मचारियों की सुरक्षा और वृद्धि को सुनिश्चित करना आसान होता है। उन्होंने यह भी कहा कि लंबे समय तक कंपनी के बारे में सोचते हुए कर्मचारियों पर निवेश करना हमेशा बेहतर होता है।
Freshworks की हालिया घोषणाओं में छंटनी के साथ-साथ $400 मिलियन के स्टॉक बायबैक ने कंपनी के शेयरों को अमेरिकी बाजार में 28% तक बढ़ा दिया है। इस परिप्रेक्ष्य में वेम्बु की टिप्पणियाँ और भी महत्वपूर्ण हो जाती हैं, क्योंकि वे उन प्रथाओं पर सवाल उठा रहे हैं जो दिखने में अधिक लाभदायक हो सकती हैं लेकिन दीर्घकालिक दृष्टिकोण में हानिकारक होती हैं।
इन आलोचनाओं के बीच, यह सोचना आवश्यक है कि एक कंपनी किस प्रकार से अपने संसाधनों का प्रबंधन कर सकती है। दूसरे शब्दों में, जब कंपनी के पास पर्याप्त नकदी पूंजी है तो उसे कर्मचारियों की छंटनी करने की बजाय आदेशों और अवसरों का सृजन करने पर ध्यान देना चाहिए। इससे न केवल कर्मचारियों की अंतरात्मा मजबूत होगी, बल्कि यह कंपनी के लिए भी दीर्घकालिक लाभदायक सिद्ध होगा।
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लोग टिप्पणियाँ
इतनी बड़ी कंपनी के पास एक बिलियन नकद है और फिर भी लोगों को निकाल देना... ये सिर्फ लालच नहीं, बेइमानी है। Zoho की तरह निजी कंपनी बने रहना ही सही रास्ता है। श्रीधर वेम्बु जैसे लोग हमें याद दिलाते हैं कि इंसानियत अभी भी कंपनियों के दिल में बसी है।
अरे भाई ये सब बकवास है! Freshworks के शेयर बढ़े तो लोग खुश हो रहे हैं, और तुम निकाले गए लोगों के लिए रो रहे हो? बाजार का नियम है ना, जो बड़ा होगा वो बचेगा! ये लोग तो बस अपनी इमेज बनाने के लिए बोल रहे हैं।
अरे यार, ये जो लोग छंटनी के बाद शेयर बढ़ाने को बड़ा बता रहे हैं... वो जानते ही नहीं कि एक टीम का विश्वास कितना कीमती होता है। Zoho की तरह निजी रहो, तो लोग आपके साथ बने रहते हैं। शेयरधारक तो एक दिन चले जाते हैं, लेकिन एक अच्छा इंजीनियर तो आपकी कंपनी की आत्मा बन जाता है। और हाँ, ये बात बिल्कुल सच है - अमेरिकी मॉडल भारत में घुस रहा है, और ये खतरनाक है।
इतना बड़ा नकद बैलेंस और छंटनी? 😒 ये तो बस एक बड़ा फ्रॉड है। श्रीधर वेम्बु तो असली बॉस हैं, जो इंसानों को प्राथमिकता देते हैं। मैंने Zoho के साथ काम किया है... वहां तो लोग घर जैसा महसूस करते हैं। Freshworks के लोगों को तो बस एक नया नौकरी का लुभावना ऑफर देना चाहिए था, न कि बाहर निकालना। 🤷♂️
व्यवसायिक निर्णयों को नैतिकता के आधार पर मूल्यांकन करना एक अत्यंत अविकसित दृष्टिकोण है। शेयरधारकों को रिटर्न देना कंपनी की प्राथमिक जिम्मेदारी है। निकाले गए कर्मचारियों के लिए अन्य अवसर उपलब्ध हैं। यह एक बाजार-आधारित अर्थव्यवस्था है, न कि एक सामाजिक कल्याण योजना।
ये सब अमेरिकी बाहरी दबाव का नतीजा है। हमारे अपने भारतीय उद्यमी अपनी जमीन को बचाने के लिए नहीं, बल्कि विदेशी निवेशकों के लिए अपने ही लोगों को निकाल रहे हैं। ये नौकरियां तो हमारे बच्चों के भविष्य की नींव हैं! इस तरह की नीतियों को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। भारत की आत्मा इससे बची रहे।
मैंने अपने दोस्त को Freshworks में निकालते देखा है। वो दिन भर रोया। लेकिन जब उसे एक छोटी सी स्टार्टअप में जॉब मिली, तो वो बहुत खुश था। श्रीधर वेम्बु जी की बात सच है - लोगों पर निवेश करो। वो तुम्हारी असली संपत्ति हैं। बस थोड़ा सा दिल लगाओ। ❤️
ये सब एक बड़ा गुप्त योजना है... शेयरधारकों के लिए बड़ा नकद बनाने के लिए लोगों को निकाला जा रहा है। अगला कदम क्या होगा? कर्मचारियों को घर पर बैठकर काम करने के लिए मजबूर करना? 😳
हर कंपनी ऐसा करती है... बस तुम्हें नहीं पता। श्रीधर वेम्बु को भी अपने लोगों को निकालना पड़ा होगा। ये सब बहुत नाटक है।
आप लोग ये कह रहे हैं कि नकदी है तो छंटनी नहीं करनी चाहिए? लेकिन ये नकदी कहाँ से आई? शेयरधारकों की निवेश की वजह से। और उन्हें रिटर्न देना जरूरी है। आप इसे नैतिकता का मुद्दा बना रहे हैं, लेकिन व्यवसाय का मुद्दा है ना?
जब तक हम अपने बाजार में इंसानों को नहीं बनाएंगे, तब तक ये बातें बस शब्दों का खेल रहेंगी। Zoho की तरह बनो - जहां लोग आते हैं तो उनका दिल बदल जाता है। नहीं तो ये बस एक और बड़ी कंपनी हो जाएगी, जिसके बारे में कोई याद नहीं रखेगा।
अरे भाई, ये तो बस शेयर बढ़ाने के लिए नकदी का इस्तेमाल कर रहे हैं! अगर ये लोग अपने लोगों को निकाल रहे हैं तो फिर उनके लिए क्या बचा? बस एक ट्रेन का टिकट और एक नया नाम 😵💫
क्या ये छंटनी वास्तव में बिजनेस के लिए जरूरी थी या ये एक ट्रिक थी जिससे शेयर बढ़े? अगर नकदी है तो ऐसा क्यों? क्या कोई एनालिस्ट ने इसका विश्लेषण किया है?
लालच का नाम बाजार है। ये सब बस एक गणित है। श्रीधर वेम्बु की बात सुनने में अच्छा लगता है, लेकिन दुनिया ऐसी नहीं चलती।
बस एक बात - ये लोग बहुत ज्यादा बोल रहे हैं।
श्रीधर वेम्बु जी की बात बिल्कुल सही है। मैंने एक छोटी सी कंपनी में काम किया था जहां लोगों को निकालने की बजाय नए प्रोजेक्ट्स दिए गए थे। वहां लोग अपने घर की तरह महसूस करते थे। ये नहीं कि बड़ी कंपनियां बेहतर होती हैं - बल्कि जहां इंसान पहले हों, वहीं असली विकास होता है।
ये सब नैतिक दृष्टिकोण बहुत अच्छा है, लेकिन कंपनी का असली उद्देश्य शेयरधारकों को लाभ पहुंचाना है। इसलिए छंटनी एक आवश्यक दुख है।
दोस्तों, ये बातें तो बहुत अच्छी लगती हैं... लेकिन जब आप बिजनेस करते हैं तो दिल नहीं, दिमाग चलाना पड़ता है। श्रीधर वेम्बु जी अच्छे हैं, लेकिन उनकी बातें हर कंपनी के लिए नहीं लागू होतीं। बस एक बात - इंसानियत के साथ बिजनेस भी करना चाहिए। 😊
हाँ, और ये वो लोग हैं जो अपने बैंक बैलेंस को बढ़ाने के लिए लोगों के घरों को खाली कर देते हैं। और फिर कहते हैं - हम तो बस बिजनेस कर रहे हैं। बिजनेस का मतलब तो इंसानों को बेचना नहीं होता।