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न्यायिक हिरासत: क्या है और कैसे बचें?

जब कोई व्यक्ति पुलिस द्वारा पकड़ लिया जाता है और फिर अदालत में ले जाया जाता है, तो उसकी हालत को "न्यायिक हिरासत" कहा जाता है। आम बातें सुनते‑सुनते हम इस शब्द को सिर्फ जिएल में बंद रहने से जोड़ते हैं, लेकिन असली में यह एक कानूनी प्रक्रिया है जिसमें अदालत तय करती है कि व्यक्ति को कब तक रखना है और उसके क्या‑क्या अधिकार हैं।

न्यायिक हिरासत कब लगती है?

किसी को गिरफ्तार करने के बाद पुलिस को कोर्ट में पेश करना ज़रूरी होता है, वरना वह अपने अधिकारों को तोड़ रहा होगा। अगर कोर्ट यह देखती है कि आरोपी को तुरंत रिहा करना जोखिमभरा हो सकता है—जैसे वह सबूत नष्ट कर सकता है, गवाहों को डराकर रोक सकता है या फिर खुद भाग सकता है—तो वह "न्यायिक हिरासत" का आदेश देती है। इसके पीछे मुख्य तौर‑तरीका धारा 167 (CrPC) है, जो बताता है कि अधिकतम 90 दिन तक हिरासत रखी जा सकती है, अगर आईपीसी के तहत सबूत नहीं मिलते तो कोर्ट इसे बढ़ा भी सकती है।

हिरासत में आपके अधिकार

हिरासत में रहने वाला व्यक्ति भी अधिकारों का हकदार है। सबसे पहला अधिकार है वकील से मिलना—कोई भी वकील, चाहे मुफ्त हो या किराए पर, आपको मिल सकता है। दूसरा, कोई भी पुलिस या जेल अधिकारी आपको शारीरिक या मानसिक उत्पीड़न नहीं कर सकता। अगर आप महसूस करते हैं कि आपके अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है, तो आप तुरंत उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर सकते हैं।

साथ ही, हिरासत में होने के दौरान आपको मेडिकल जांच, भोजन, साफ‑सुथरा बिस्तर और व्यक्तिगत चीज़ें (जैसे कपड़े, दवाइयाँ) मिलनी चाहिए। अगर ये सुविधाएँ नहीं मिलतीं, तो आप जेल विभाग को लिखित शिकायत कर सकते हैं। यह भी याद रखें कि कोर्ट में आपका केस सुनने से पहले आप जेल में नहीं रह सकते अगर आपको बंधक छोड़ने की शर्त पर रिहा किया गया है।

अब बात करते हैं कि कैसे बचें या कम से कम समय कम रखें। सबसे ज़रूरी है—जैसे ही आप गिरफ्तार होते हैं, तुरंत एक वकील से संपर्क करें। वकील कोर्ट को यह कहेगा कि आप अभी तक कोई अपराध नहीं स्वीकारे, इसलिए आपकी हिरासत अनावश्यक नहीं। अगर कोर्ट को लगता है कि आप भाग सकते हैं, तो वह बंधक या जमानत के माध्यम से आपको बाहर निकलने का मौका दे सकता है, जिससे आप जेल में नहीं रहते।

अगर आपको जमानत नहीं मिलती, तो आप कई बार अपील कर सकते हैं। हर अपील में आप यह पूछते हैं कि क्या नई साक्ष्य या परिस्थिति बदल गई है जो हिरासत को अनावश्यक बनाती है। कोर्ट को आपके केस की पूरी जानकारी चाहिए, इसलिए वकील को सभी दस्तावेज़, कम्युनिकेशन और पुलिस रिपोर्ट देनी चाहिए।

आखिरकार, "न्यायिक हिरासत" का मतलब जेल में रहने से नहीं, बल्कि एक कानूनी प्रक्रिया से है जिससे न्याय सुनिश्चित करने की कोशिश की जाती है। समझदारी से काम लें, अपने अधिकारों को जानें और सही सलाह लें, ताकि आप इस दौरान ज्यादा समय बंधक न बनें।

दिल्ली कोर्ट ने अरविंद केजरीवाल की न्यायिक हिरासत को 20 अगस्त तक बढ़ाया एक्‍साइज़ नीति मामले में

दिल्ली कोर्ट ने अरविंद केजरीवाल की न्यायिक हिरासत को 20 अगस्त तक बढ़ाया एक्‍साइज़ नीति मामले में

दिल्ली कोर्ट ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की न्यायिक हिरासत को 20 अगस्त तक बढ़ा दिया है। यह मामला केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) द्वारा दायर किया गया था जिसमें अब रद्द हो चुकी एक्‍साइज़ नीति के संबंध में आरोप लगे हैं। दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में केजरीवाल की गिरफ्तारी को सही ठहराते हुए CBI की कार्रवाई की पुष्टि की थी।

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