गुरु पूर्णिमा – महत्व, इतिहास और आज के उत्सव
गुरु पूर्णिमा हर साल शरद ऋतु में आती है, जब सूर्य राशि मिथुन में प्रवेश करता है। इस दिन हम अपने गुरुओं को सम्मानित करते हैं, चाहे वह शैक्षिक हों या आध्यात्मिक। आप भी सोच रहे होंगे, इस विशेष दिन को कैसे मनाया जाए? चलिए आसान‑से‑समझाने वाले तरीके देखते हैं।
गुरु पूर्णिमा का मतलब क्या है?
पूरा महीना बीतने के बाद पूर्णिमा में गुरु देवता का शुक्रिया अदा करने का यह दिन माना जाता है। वरुण वेद, बौद्ध धर्म और कई योग परम्पराओं में इसे गुरु के ज्ञान के प्रति कृतज्ञता के रूप में मनाया जाता है। इस दिन लोग गंगा या किसी पवित्र जल स्रोत में स्नान करके, मंत्र जपते और गुरुदेव को प्रसाद चढ़ाते हैं।
2025 में गुरु पूर्णिमा कैसे मनाएँ?
2025 में गुरु पूर्णिमा 2 अक्टूबर को पड़ेगी। अगर आप बड़े शहरों में रहते हैं तो स्थानीय मंदिर या आध्यात्मिक केंद्रों में विशेष कार्यक्रम होते हैं—ध्यान सत्र, शास्त्र पढ़ाई और सामुदायिक प्रसाद वितरण। घर पर भी आप सरल रिवाज अपना सकते हैं: सुबह जल्दी उठकर कपड़े धोकर साफ‑सुथरे पोशाक में भगवान के चरणों में फूल रखें, फिर हल्का स्नान करके मन को शान्त रखें।
भोजन में मिठाई के बजाय फल, चना और गुजिया देना बेहतर माना जाता है, क्योंकि यह शुद्धता का प्रतीक है। अगर आपके पास कोई ऑनलाइन गुरु है, तो वीडियो कॉल पर उनका अभिवादन कर सकते हैं और उनके द्वारा बताए गए अध्याय पढ़ सकते हैं।
कई लोग इस अवसर पर अपने पुराने गुरुओं को लिखित धन्यवाद पत्र भी भेजते हैं। यह छोटा‑सा कदम आपके रिश्ते को और मजबूत बनाता है। अगर आप सामाजिक कार्य में जुड़े हैं तो, एक रक्तदान कैंप या मुफ्त शिक्षा सत्र आयोजित करना भी गुरु वंदना का हिस्सा माना जाता है।
गुरु पूर्णिमा सिर्फ एक त्यौहार नहीं, बल्कि खुद को सीखने, बढ़ने और दूसरों को सहायता करने का मौका है। इस साल के लिए एक सरल योजना बनायें: सुबह ध्यान, दोपहर में शास्त्र, शाम को सामुदायिक कार्य। फिर दिन के अंत में अपने अनुभव को लिखें—किसी भी रूप में।
तो अगली बार जब गुरु पूर्णिमा आए, तो इसे केवल पूजा‑पाठ तक सीमित न रखें। अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने का एक अच्छा अवसर बना कर रखें। आपका छोटा‑सा प्रयास भी आपके गुरु के चरणों में रंग लाएगा।