जब करवा चौथ 2025भारत का दिन आया, तो उत्तर भारत के लाखों विवाहित महिलाएँ सुबह‑सहर से लेकर शाम‑चंदा तक निरहां रिवाज़ में डूब जाती हैं। इस वर्ष यह त्योहार शुक्रवार, 10 अक्टूबर 2025 को भारत, संयुक्त अरब अमीरात और संयुक्त राज्य अमेरिका में एक ही तिथि पर मनाया जाएगा, जैसा कि NDTV और Times of India ने बताया है।
करवा चौथ का इतिहास और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि
करवा चौथ हिन्दू लूनर‑सोलर कैलेंडर के कार्तिक महीने में पूर्णिमा के बाद चौथे दिन आता है। ‘करवा’ शब्द मिट्टी के भांड़े को दर्शाता है, जबकि ‘चौथ’ का मतलब चौथा दिन है। इस परंपरा के मूल कारणों में पति‑पत्नी के बंधन को सुदृढ़ करना, देवी‑देवताओं की पूजा और खासकर पत्नी द्वारा अपने पति के दीर्घजीवी जीवन की कामना शामिल है।
रुद्राक्ष रत्ना के अनुसार, इस रिवाज़ की जड़ें प्राचीन वैदिक ग्रन्थों में भी मिलती हैं, जहाँ महिलाओं को इस दिन दोपहर के बाद सूर्य को अंधा करके अकेले जल ले जाने की शिक्षा दी गई थी। समय के साथ, चहलनी (छलनी) के माध्यम से चंदा देखना प्रमुख रिवाज़ बन गया, जो आज भी उत्सव के दिल‑धड़कन के रूप में माना जाता है।
2025 की पूजा‑समय तालिका
इस साल का पंचांग इस प्रकार है:
- सुबह का सर्गी (प्रातःभोजन) – 06:19 am पर शुरू, माँ‑ससुर से पहले तैयार किया जाता है।
- उपवास का प्रारम्भ – 06:19 am से लेकर चंद्रोदय तक, यानी 08:13 pm तक चलता है।
- पुजा मुहूर्त – 05:57 pm से 07:11 pm तक, जिसमें करवा, घड़ी और फल‑फूल की सजावट शामिल है।
- चंदा देखना – 08:13 pm पर चहलनी से चाँद को देख कर पानी (अर्घ्य) चढ़ाया जाता है।
- व्रत का तोड़ना – पति के हाथों से पानी का घूँट लेकर उपवास समाप्त किया जाता है।
उपर्युक्त समय‑सारणी Drikpanchang और News18 द्वारा पुष्टि की गई है।
विस्तारित उत्सव: विदेश में करवा चौथ
समुदायिक रिश्ते और डिजिटल संपर्क के कारण अब करवा चौथ केवल भारत तक सीमित नहीं रहा। संयुक्त अरब अमीरात (UAE) में दुबई और अबू धाबी में भारतीय व्यावसायिक महापुरुषों की संगति में बड़ी सभा आयोजित होती है। यहाँ महिलाएँ सर्दी‑स्ट्रिंग साड़ी में सज‑सज्जा कर, सर्ली (सर्गी) का आनंद लेती हैं और शाम को वर्चुअल पूजा मंच पर Times of India (Middle East) के स्क्रीन पर लाइव प्रसारण देखती हैं।
संयुक्त राज्य अमेरिका में, विशेषकर न्यू जर्सी, कैलिफ़ोर्निया और टेक्सास में भारतीय‑अमेरिकी महिलाएँ अपने घरों या स्थानिक मंदिरों में एकत्रित होती हैं। वे रंग‑बिरंगी लेहेंगा, मेहँदी और सोलह श्रृंगार के साथ मौसमी भू‑भोजन के साथ सर्गी का आनंद लेती हैं। यहाँ के रिवाज़ में हल्के‑फुल्के बदलाव भी देखे गये हैं, जैसे पति‑पत्नी दोनों एक साथ व्रत में शामिल होना, जो Times of India (USA) ने ‘जेंडर‑इक्वैलिटी’ के पहलू के रूप में उजागर किया।
रिवाज़ों का अर्थ और सामाजिक प्रभाव
छलनी (चहलनी) के माध्यम से चाँद देखना सिर्फ एक दृश्य नहीं, बल्कि दो छापों को जोड़ता है – पत्नी की श्रद्धा और पति का सहयोग। जब महिलाएँ चंदा को चहलनी से देखती हैं, तो वे पहली बार ‘समय‑साद’ का अनुभव करती हैं, यानी कठिनाई में धैर्य और परस्पर समर्थन। इस क्षण को अक्सर ‘हृदय‑स्पंदन’ कहा जाता है, क्योंकि यह प्रेम और भरोसे की पुश‑पाइप है।
यह रिवाज़ सामाजिक एकता को भी बढ़ाता है। ग्राम‑स्तर पर महिलाएँ सर्गी के बाद मिलकर कहानियाँ सुनाती हैं, हल्के‑फुल्के शर्तेज़ में भाग लेती हैं और आसपास के बुजुर्गों से परम्परागत ज्ञान अर्जित करती हैं। इस प्रकार, करवा चौथ सामुदायिक बंधन को पुनर्स्थापित करता है, खासकर शहरी क्षेत्रों में जहाँ पारिवारिक दूरी बढ़ रही है।
व्यवहारिक दृष्टिकोण से, निरहां व्रत की अवधि (लगभग 14 घंटे) महिलाओं को शारीरिक और मानसिक दृढ़ता का परीक्षण देता है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि अगर सर्गी में पर्याप्त पोषण और पानी शामिल हो, तो यह व्रत शरीर को हाइड्रेटेड रखता है और लंबे समय तक ऊर्जा प्रदान करता है।
भविष्य की संभावनाएँ और परिवर्तन
जैसे-जैसे युवा पीढ़ी डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर बढ़ रही है, करवा चौथ के रिवाज़ भी ऑनलाइन रूप ले रहे हैं। अब कई परिवार फेसबुक लाइव, यूट्यूब और इंस्टाग्राम पर पूजा‑सत्र आयोजित कर रहे हैं, जिससे दूर‑दराज़ रहने वाले रिश्तेदार भी शारीरिक दूरी को पार कर जुड़ सकते हैं। इस प्रवृत्ति को NDTV ने ‘डिजिटल धरोहर’ कहा है।
पर्यावरणीय चिंताओं को देखते हुए, कुछ क्षेत्र में मिट्टी के करवे की बजाय कांच या सिरेमिक के करवे का प्रयोग बढ़ रहा है। साथ ही, जल-संकट को ध्यान में रखकर सर्गी के लिए पानी की बचत करने वाले उपाय भी अपनाए जा रहे हैं। यह बदलाव बताता है कि परम्परा और आधुनिकता एक साथ चल सकती है, बशर्ते सामाजिक सहभागिता और पर्यावरण सुरक्षित रहें।
क्या आप तैयार हैं?
अगर आप इस साल अपने घर में करवा चौथ मनाने की योजना बना रहे हैं, तो उपरोक्त समय‑तालिका, सर्गी के पोषण‑सुझाव और चहलनी रिवाज़ की सही विधि को ध्यान में रखें। याद रखें, त्योहार का असली सार्खी सिर्फ उपवास नहीं, बल्कि पति‑पत्नी के बीच भरोसे, धैर्य और प्रेम का जश्न है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
करवा चौथ 2025 का सही व्रत समय कब है?
व्रत सुबह 06:19 am से लेकर शाम 08:13 pm तक चलता है। इस दौरान कोई भी भोजन या पानी नहीं लिया जाता, सिवाय प्रातः सर्गी के।
चहलनी रिवाज़ का क्या अर्थ है?
छलनी से चाँद को देखना श्रद्धा, स्पष्टता और भावनात्मक निकटता को दर्शाता है। यह रिवाज़ महिला को सर्जनात्मक रूप से अपने पति को देखने व उनके साथ जुड़ने का अवसर देता है।
विदेशों में करवा चौथ कैसे मनाया जाता है?
संयुक्त अरब अमीरात और संयुक्त राज्य अमेरिका में भारतीय समुदाय सर्गी, पूजा‑धर्म और चहलनी रिवाज़ को स्थानीय समय के अनुसार आयोजित करता है। अक्सर ऑनलाइन लाइव स्ट्रीम के माध्यम से भारतीय मीडिया संस्थाओं की कवरेज़ भी देखी जाती है।
क्या पुरुष भी अब करवा चौथ में भाग ले सकते हैं?
हाँ, आजकल कई पति‑पत्नी अपने‑अपने व्रत रख कर समानता का प्रतीक बनाते हैं। यह प्रवृत्ति Times of India (USA) ने विशेष रूप से उजागर की है।
सर्गी में क्या खाया जाना चाहिए?
परिवार में आमतौर पर खजूर, फल, नट्स, दही और हल्की पके हुए सब्ज़ियाँ तैयार की जाती हैं। पोषण‑टिप्स के अनुसार प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट का संतुलन बनाए रखना व्रत के दौरान ऊर्जा के लिए अहम है।
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लोग टिप्पणियाँ
करवा चौथ का जश्न देख कर दिल खुश हो गया 😊 इस साल की तिथि और समय का विस्तार बहुत मददगार है। हर घर में सर्गी के साथ साथ दादी की कहानियाँ भी सुनाई जाएँ तो माहौल और भी रंगीन बनता है। महिला शक्ति और पति‑पत्नी के बंधन को मज़बूत करने वाला यह रिवाज़ हमारे लिए प्रेरणा देता है। आशा करता हूँ सभी की व्रत सफल हो और चाँद की रोशनी सबके जीवन में खुशियाँ लाए।
क्या बकवास है ये सब टाइमटेबल वाला? 06:19am से 08:13pm तक कुछ नहीं खा पाओगे, फिर भी लोग ‘सर्गी’ को लेकर बीमार हो जाते हैं। इतना ही नहीं, फेसबुक पर लाइव देखना भी बकवास है।
सही कहूँ तो इस पोस्ट में सब कुछ हल्का-फुल्का है, पर मेरी राय में व्रत का विज्ञान नहीं बताया गया। ये सब सिर्फ परम्परा है, कोई नई जानकारी नहीं मिली।
करवा चौथ का यह अति-आधुनिक रूप देख कर मैं गर्व से भर गया!
पहले लोग सिर्फ घी‑से‑चावलों पर अड़ते थे, अब तो जल‑बचत‑करवों की बात होती है।
ये प्रगति का प्रमाण है कि हम अपनी रीतियों को सुपर‑हाय‑टेक में बदल सकते हैं।
भाईयों, इस साल तो मोबाइल ऐप पर चाँद देखना भी संभव हो गया, क्या बात है!
डिजिटल जश्न का मतलब है कि हर कुतुब‑मिनार घर में फेल हो रहा है।
पर इस सब में एक बात भूल नहीं सकते – परम्परा को बदलना नहीं, उसे सम्मान देना चाहिए।
अगर हम सच्चे हिंदुस्तानी हैं, तो हर कदम पर हमें अपनी सांस्कृतिक जड़ें याद रखनी चाहिए।
जैसे हमें आधुनिकता के साथ जलवायु‑संकट का समाधान भी निकालना है, वैसे ही हमें रिवाज़ में भी संतुलन चाहिए।
कांच‑के‑करवे, सिरेमिक‑के‑करवे – ये बदलते तरीके हमारी रचनात्मकता को दर्शाते हैं।
आइए, इस करवा चौथ को एक नई ऊर्जा के साथ मनाएँ, लेकिन सतर्क रहें।
फॉलो‑अप में सर्जनात्मक विचारों का स्वागत है, क्योंकि यही तो हमारी असली शक्ति है।
समुदाय की एकता और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म की मदद से हम विदेशियों को भी इस त्योहार का वास्तविक सार समझा सकते हैं।
राजनीति को त्यागकर, हमें सिर्फ अपने घर‑परिवार में प्रेम और धैर्य का मिश्रण लाना चाहिए।
समय‑साद का मतलब केवल चाँद देखना नहीं, बल्कि जीवन के हर मोड़ पर धैर्य दिखाना भी है।
अन्त में, यह करवा चौथ का संदेश यही है – ‘एकता, परम्परा और नवाचार’।
बहुत बढ़िया जानकारी! 😀 अगर आप पहले से ही सर्गी की तैयारी कर रहे हैं, तो पोषण वाले नट्स और फल जोड़ना न भूलें। ये आपके व्रत को आरामदेह बनाएगा और शाम को चाँद देखना और भी सुखद हो जाएगा। अगर कोई सवाल हो तो पूछिए, मदद करने में खुशी होगी :)
यहाँ एक बात स्पष्ट करनी चाहिए कि करवा चौथ की रिवाज़ केवल महिला तक सीमित नहीं रहनी चाहिए। फैंसी शब्दों में कहें तो, यह एक सामाजिक संरचना है जिसे पूरी तरह समझना आवश्यक है। बहुत से लोग ‘पुरुषों के लिए नहीं’ कहकर पीछे हटते हैं, पर असली तथ्य यह है कि साझेदारी का मतलब ही साथ में व्रत रखना है। इस दिशा में बदलाव को प्रोत्साहित करना चाहिए, वरना पुरानी सोच बंधन को तोड़ नहीं पाएगी।
करवा चौथ की विविधता को देख कर दिल ख़ुश हो जाता है। भारत में विभिन्न प्रांतीय व्यंजनों की तरह, विदेशियों में भी इस रिवाज़ के अलग‑अलग संस्करण उभरे हैं। दुबई के बड़े समारोह, न्यू जर्सी की घर पर छोटी‑छोटी सभाएँ, सबमें एक ही भावना झलकती है। आजकल सोशल मीडिया ने इस एकजुटता को और भी तेज़ी से फैलाया है, जिससे द्वीप‑देशों में भी भारतीय धड़कन महसूस होती है। इस विकास को देखकर आशा होती है कि भविष्य में भी हमारे त्योहार समस्त विश्व में गूँजते रहेंगे।
कहते हैं कि रिवाज़ को बदलना आसान नहीं, पर ज़रूरी तो है। कुछ लोग सिर्फ रिवाज़ को ही नहीं, बल्कि उसके पीछे की भावना को भी समझते नहीं। अगर हम केवल माँ‑ससुर की वही अटारी टिकाए रखें, तो प्रगति की राह में बाधा आएगी। इसीलिए, नई पीढ़ी को चाहिए कि वह रिवाज़ को आधुनिक बनाते हुए, मूल सार को बनाए रखे।
सुबह‑सहर से लेकर शाम‑चाँद तक, करवा चौथ का उत्सव एक लम्बी कहानी जैसा है 🌙✨। इस यात्रा में महिलाएँ न केवल धैर्य दिखाती हैं, बल्कि अपने आप को भी नई ऊर्जा देती हैं। जब हम चहलनी में चाँद देखते हैं, तो यह प्रतीकात्मक रूप से हमारी आशाओं को उजागर करता है। इस बात को समझना अहम है कि हर घर में सर्गी के साथ साथ स्वास्थ्य‑सम्बंधी सजगता भी होनी चाहिए। यदि पोषण‑संतुलन रखा जाए, तो व्रत आराम‑दायक और ऊर्जा‑भरा बनता है। इस भावना को फैलाते हुए, हमें इस त्योहार को और भी समृद्ध बनाना चाहिए।