ग्राहम थॉर्प: क्रिकेट के मैदान का जुझारू योद्धा
ग्राहम थॉर्प एक ऐसा नाम है जिसने इंग्लैंड क्रिकेट के मैदान पर अपनी अद्वितीय पहचान बनाई। उनके असामायिक निधन से न सिर्फ उनके चाहने वाले बल्कि क्रिकेट की पूरी दुनिया सदमे में है। थॉर्प का जीवन और उनका करियर दोनों ही संघर्ष और सफलता की कहानियाँ सुनाते हैं।
कॅरियर की शुरुआत और उपलब्धियाँ
ग्राहम थॉर्प ने अपने कॅरियर की शुरुआत 1993 में ट्रेंट ब्रिज में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ एक शतक के साथ की। उनके इस शतक ने उनकी ठोस खेल भावना और दृढ़ता को प्रदर्शित किया। उन्होंने इंग्लैंड के लिए 100 टेस्ट मैच खेले और 6744 रन बनाए जिनमें 16 शतक शामिल हैं। उनकी बल्लेबाजी का औसत 44.66 रहा जो उनकी उत्कृष्टता को दर्शाता है।
वह सिर्फ टेस्ट मैचों तक ही सीमित नहीं रहे, बल्कि 82 एकदिवसीय मैचों में भी अपना दमखम दिखाया। 1988 से 2005 तक सरे के लिए खेले और लगभग 20,000 रन बनाए।
व्यक्तिगत जीवन और संघर्ष
थॉर्प का व्यक्तिगत जीवन भी सार्वजनिक चर्चा का विषय रहा, जिसमें उनके संघर्ष और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी चुनौतियाँ शामिल थीं। 2002 में लॉर्ड्स में भारत के खिलाफ टेस्ट के दौरान उनके संघर्षों ने उन्हें क्रिकेट से अनिश्चितकालीन ब्रेक लेने पर मजबूर किया। लेकिन थॉर्प ने वापसी की और 2003 में द ओवल में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ एक शतक बनाकर अपनी ताकत का प्रदर्शन किया।
कोचिंग और बाद का जीवन
सक्रिय कॅरियर के बाद थॉर्प ने कोच के रूप में भी अपनी सेवाएं दीं। उन्होंने इंग्लैंड की कई महत्वपूर्ण जीतों में योगदान दिया और टीम को बल्लेबाजी कोच के रूप में मार्गदर्शन किया। उनकी कोचिंग में इंग्लैंड की टीम ने कई यादगार जीतें हासिल कीं। उनका अंतिम कोचिंग असाइनमेंट अफगानिस्तान के साथ था, जिसे वह बीमारी के कारण संभाल नहीं सके।
फैंस और साथियों की श्रद्धांजलि
थॉर्प के निधन पर पूर्व कोचों, साथियों, विरोधियों और वर्तमान खिलाड़ियों ने शोक व्यक्त किया। उनकी ईमानदारी और मानवीयता ने उन्हें एक अद्वितीय खेल व्यक्ति बना दिया था। उनके निधन से खेल जगत में एक बड़ी खाली जगह महसूस हो रही है।
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लोग टिप्पणियाँ
ग्राहम थॉर्प ने जिस तरह से बल्ले से दर्द भी छुपाया और जीत भी बनाई... वो सिर्फ खिलाड़ी नहीं, एक असली इंसान थे। ❤️
उनकी बल्लेबाजी का औसत 44.66 है लेकिन उनका प्रभाव उससे कहीं ज्यादा गहरा था। एक ऐसा खिलाड़ी जो हर ओवर में अपनी जिंदगी का एहसास देता था।
2002 में लॉर्ड्स में उनका ब्रेक बस एक चोट नहीं था बल्कि एक संकेत था कि खेल जिस तरह से बना है वो इंसानों को नहीं देखता
मैंने उन्हें एक बार लाइव देखा था और उनकी शांति और दृढ़ता ने मुझे हैरान कर दिया। बस इतना कहना है कि वो असली लीजेंड थे।
लेकिन अगर वो इतने बेहतरीन थे तो फिर इंग्लैंड ने उन्हें क्यों नहीं रखा जब वो टीम के लिए जरूरी थे? बस एक और बड़ी गलती
अरे भाई, अगर थॉर्प को बहुत ज्यादा पसंद करते हो तो उनके बारे में लिखो... लेकिन ये सब बातें अब जब वो नहीं हैं, तो इतना नाटक क्यों? असली सम्मान तो उनके खेल में था, न कि इन लंबे-लंबे आर्टिकल्स में।
थॉर्प ने बल्ले से नहीं, दिल से खेला था... और इसलिए उनका जीवन एक कविता बन गया। 🌅
उनके करियर के आंकड़े उचित हैं, लेकिन उनकी व्यक्तिगत जीवन शैली, विशेष रूप से मानसिक स्वास्थ्य के साथ उनका व्यवहार, एक उचित आदर्श नहीं है जिसे जनता को प्रशंसा करनी चाहिए।
इंग्लैंड के लिए खेलने वाले खिलाड़ियों की तुलना में भारतीय खिलाड़ियों का अधिक सम्मान होना चाहिए, क्योंकि उन्हें अधिक दबाव में खेलना पड़ता है और फिर भी वे अपनी जिम्मेदारी निभाते हैं। थॉर्प का जीवन एक अच्छी कहानी है, लेकिन इसे अतिशयोक्ति के साथ नहीं बढ़ाया जाना चाहिए।
उनकी वापसी 2003 में द ओवल में शतक बनाकर बस एक जीत नहीं, एक जीवन का संदेश था। जिस तरह से वो बाहर आए, उस तरह से हमें भी अपने दर्द के बाद खड़े होना चाहिए।
वो बस एक खिलाड़ी थे... लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि उनकी बीमारी का असली कारण कुछ और हो सकता है? 🤔