3D-प्रिंटेड रॉकेट इंजन क्या है और क्यों अब सबकी नज़र में है?
अगर आप कभी रोकेट देखे हैं तो समझेंगे कि उसके इंजन में बहुत सारे जटिल भाग होते हैं – पाइप, वैल्व, इग्निशन सिस्टम आदि। इन सबको पारंपरिक मशीनिंग से बनाना महँगा, समय‑सपende और कभी‑कभी त्रुटिपूर्ण हो सकता है। अब 3डी प्रिंटिंग का सहारा लेकर ये सारे पार्ट एक ही चीज़ में बनते हैं, जिससे वजन कम होता है और लागत घटती है।
3D प्रिंटिंग से रॉकेट इंजन बनते कैसे?
सबसे पहले डिज़ाइनर कंप्यूटर पे पूरा इंजन का 3डी मॉडल बनाते हैं। फिर इस मॉडल को छोटे‑छोटे लेयर में बाँटा जाता है। प्रिंटर एक‑एक लेयर को धातु या हाई‑टेम्परेचर प्लास्टिक से बनाता है और तुरंत ठंडा करके अगले लेयर पर जाता है। इस प्रक्रिया से जटिल आकार, जैसे जिग‑सॉ पैटर्न वाले कूलिंग चैनल या हल्के ग्रेडिएंट स्ट्रक्चर, एक ही प्रिंट में तैयार हो जाते हैं।
काफी कंपनी अब मिश्रित‑धातु प्रिंटिंग कर रही हैं, जहाँ टाइटेनियम‑एल्यूमिनियम के साथ करे-करे फाइल्स मिलाते हैं। इससे इंजन में उच्च तापमान पर भी मजबूती बनी रहती है, और वजन 30‑40% कम हो जाता है।
भारत में 3D‑प्रिंटेड रॉकेट इंजन की नई पहलें
भारत में इस तकनीक को अपनाने वाला पहला बड़ा नाम है इसरो। हाल ही में उन्होंने एक छोटा परीक्षण इंजन 3डी‑प्रिंटेड वैरिएंट से लॉन्च किया, जिसमें प्रोपेलन्ट इग्निशन सिस्टम पूरी तरह प्रिंटेड था। इस टेस्ट ने दिखाया कि लागत में 50% तक घटाव और लॉन्च के बाद इंजन का री‑यूसेबिलिटी बढ़ गया।
स्टार्ट‑अप कंपनियों जैसे “स्पेसफ़ैब” भी छोटे सैटेलाइट्स के लिए 3डी‑प्रिंटेड मोटर्स बनाना शुरू कर रही हैं। इनके मोटर्स में इंट्री‑स्टेज और आउट्री‑स्टेज दोनों को एक ही प्रिंट में मिलाकर साफ‑सुथरी असेंबली मिलती है। इससे छोटे सैटेलाइट कंपनियों को जल्दी और सस्ते में प्रोटोटाइप बनाने में मदद मिल रही है।
अगर आप इस क्षेत्र में करियर बनाना चाहते हैं तो अब मशीनिंग की बजाय एडिटिंग, मटेरियल साइंस और सॉफ़्टवेयर स्किल्स की मांग बढ़ रही है। कई इंटर्नशिप और ट्रेनिंग प्रोग्राम कंपनियां दे रही हैं, जहाँ आप सीधे प्रिंटर चलाते हैं और रॉकेट पार्ट्स टेस्ट करते हैं।
भविष्य में 3डी‑प्रिंटेड रॉकेट इंजन सस्ते, भरोसेमंद और तेज़ बनेंगे। इसका मतलब है कि छोटे‑छोटे अर्बन स्पेस मिशन्स, क़्विक‑डेलीवरियों और यहां तक कि मानव यात्रा भी अधिक सुलभ हो सकती है। आप भी अगर इस तकनीक को समझना चाहते हैं, तो ऑनलाइन कोर्स, यूट्यूब ट्यूटोरियल या स्थानीय मीट‑अप में शामिल हो सकते हैं।
तो सजग रहें, क्योंकि आज की छोटी‑सी प्रिंटर कल की अंतरिक्ष यात्रा का इंजन बन सकती है।