फेथुल्लाह गुलेन का निधन: एक विवादास्पद धर्मगुरु की कहानी
फेथुल्लाह गुलेन, जिन्हें एक धार्मिक उपदेशक के रूप में दुनिया भर में जाना जाता था, का निधन हो गया। 83 वर्षीय गुलेन की मौत के साथ ही उनके अनुयायियों और तुर्की सरकार के बीच का एक जटिल अध्याय भी समाप्त हो गया। गुलेन का लंबे समय से बीमार रहना और अमेरिका के पेंसिलवेनिया में निर्वासन में अपना जीवन बिताना एक ऐसा विषय था जो तुर्की की राजनीति में विवाद और तनाव पैदा करता रहा है।
तुर्की का वह व्यक्ति जिसने शिक्षा और समाज सेवा पर जोर देने वाले हिज़मत आंदोलन की शुरुआत की, पश्चिमी देशों में एक आदर्श समझा जाता था। लेकिन तुर्की सरकार, विशेषकर राष्ट्रपति रजब तैय्यब एर्दोगान के शासनकाल में, गुलेन का यह नेतृत्व संदिग्ध रहा है। उनके आंदोलन के स्कूल और संस्थान तुर्की में ही नहीं, बल्कि विश्वभर में फैल गए। यह विस्तार खुद में कई राजनीतिक और सामाजिक चुनौतियाँ लेकर आया, जिसने इस्तांबुल की राजनीती को हिलाकर रख दिया।
तुर्की सरकार और गुलेन के बीच तनाव
हिसाब यह है कि गुलेन के अनुयायी तुर्की की नौकरशाही, न्यायपालिका और सैन्य संस्थानों में प्रवेश कर चुके थे, जो राष्ट्रपति एर्दोगान को चिंतित करता था। यह तुर्की सरकार के लिए एक विवादास्पद मुद्दा रहा है। 2016 के असफल कू ने एर्दोगान सरकार को गुलेन पर कठोर कदम उठाने के लिए प्रेरित किया। सरकार ने गुलेन पर आरोप लगाया कि उन्होंने तुर्की के स्थायित्व को अस्थिर करने का प्रयास किया और इसे एक आतंकवादी संगठन के रूप में घोषित कर दिया।
गुलेन की विरासत और वैश्विक प्रभाव
हर खतरा और राजनीतिक तनाव के बावजूद, गुलेन ने अपने विचार और दर्शन के माध्यम से वैश्विक स्तर पर अपनी छाप छोड़ी है। उनके स्कूलों और शिक्षा संस्थानों ने पूरे विश्व में ध्यान आकर्षित किया है। हिज़मत आंदोलन ने शिक्षा को एक सशक्त माध्यम के रूप में प्रस्तुत किया, जिससे युवाओं को प्रशिक्षित होकर समाज में योगदान देने की दिशा में प्रेरित किया गया।
गुलेन का आंदोलन न केवल शिक्षा बल्कि सामाजिक सेवा के माध्यम से भी व्यापक प्रभाव डालता है। उन्होंने और उनके अनुयायियों ने अनेकों संगठनों के माध्यम से वैश्विक समस्याओं को हल करने का प्रयास किया। उनके विचारों और उनके आंदोलन पर भले ही तुर्की सरकार ने आपत्ति जताई हो, लेकिन उनके प्रयासों ने सामाजिक योद्धाओं को प्रेरित किया है।
गुलेन और तुर्की के बीच जटिल संबंध
गुलेन का तुर्की की राजनीति के साथ गहन और जटिल संबंध था। उनकी मृत्यु ने इन संबंधों को एक नई दिशा दी है। उनके निधन ने उनकी विचारधारा को और उनके अनुयायियों को नए सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है। क्या उनके विचार और विरासत तुर्की में अपनी पकड़ बना कर रख पाएँगे या नहीं, यह देखना अब बाकी है।
गुलेन की मृत्यु ने उनके अनुयायियों और तुर्की सरकार के बीच के संबंधों की जटिलताओं को और बढ़ा दिया है। हालांकि राष्ट्रपति एर्दोगान के नेतृत्व में तुर्की सरकार गुलेन को एक आतंकवादी के रूप में देखती रही है, और उनकी गिरफ्तारी की कोशिश करती रही है, उनके अनुयायी उनके विचारों को एक आदर्श के रूप में मानते हैं।
अब आगे क्या?
गुलेन की मृत्यु के बाद, उनके अनुयायियों और हिज़मत आंदोलन को झेलने वाले संघर्ष और चुनौतियाँ बढ़ सकती हैं।
उनकी विरासत और उनकी विचारधारा का भविष्य अब उनके अनुयायियों के हाथ में होगा। क्या तुर्की सरकार के साथ उनके संबंधों में सुधार होगा, या तनाव और विवाद ही बने रहेंगे, यह समय बताएगा। यह निश्चित रूप से एक ऐसा समय होगा जो भविष्य की तुर्की राजनीति में एक नया अध्याय शुरू करेगा।
- लोकप्रिय टैग
- फेथुल्लाह गुलेन
- तुर्की कू
- हिज़मत आंदोलन
- एर्दोगान
एक टिप्पणी लिखें