परिचय
रिशभ शेट्टी द्वारा निर्देशित फिल्म 'कांतारा' एक अद्वितीय दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है जो दर्शकों को एक सांस्कृतिक और पौराणिक यात्रा पर ले जाती है। कर्नाटक के तटीय कस्बे में स्थापित इस फिल्म में स्थानीय संस्कृति और पौराणिक कहानियों का अद्वितीय मिश्रण देखने को मिलता है। फिल्म की कहानी और पात्रों के विकास के साथ ही इसके सजीव चित्रण की भी तारीफ करनी होगी।
फिल्म की कहानी
'कांतारा' की कहानी शिवा नामक एक युवा विद्रोही के इर्द-गिर्द घूमती है जो एक स्थानीय संघर्ष में फंस जाता है। शिवा की भूमिका में रिशभ शेट्टी ने बखूबी अभिनय किया है। यह संघर्ष स्थानीय निवासियों और वन विभाग के बीच होता है जो फिल्म की केंद्रीय धारा बनता है। शिवा का करैक्टर फिल्म को एक दिशा देता है और कहानी को आगे बढ़ाता है। संघर्ष के इस तत्व के साथ फिल्म पुरानी पौराणिक और लोककथाओं को भी जोड़ती है, जो दर्शकों को सोचने पर मजबूर करती हैं।
सिनेमाटोग्राफी और प्रोडक्शन डिज़ाइन
फिल्म की सिनेमाटोग्राफी किसी भी नज़रिए से कमतर नहीं है। इसमें कर्नाटक के तटीय क्षेत्र की खूबसूरत छवियां देखने को मिलती हैं। फिल्म के रंग और दृश्य बहुत ही जीवंत और सजीव हैं। प्रोडक्शन डिज़ाइन भी बारीकी से किया गया है, जिससे हर फ्रेम में नयापन और पूर्णता दिखाई देती है। रिशभ शेट्टी ने फिल्म के हर पक्ष पर ध्यान केंद्रित किया है, चाहे वो दृश्य हों या फिर बैकग्राउंड म्यूजिक, सब कुछ मिलाकर इस फिल्म को एक यादगार अनुभव बनाते हैं।
अभिनय और पात्र
फिल्म के मुख्य पात्रों में से रिशभ शेट्टी और सप्तमी गौड़ा का अभिनय उल्लेखनीय है। रिशभ ने शिवा के किरदार को बहुत ही सजीवता से निभाया है, जिससे दर्शक उनके संघर्ष और भावनाओं को महसूस कर पाते हैं। सप्तमी गौड़ा का किरदार भी कहानी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और दोनों के बीच की केमिस्ट्री काबिल-ए-तारीफ है। बाकी कास्ट ने भी अपने-अपने किरदारों में उत्तम प्रदर्शन किया है, जिससे फिल्म का प्रत्येक दृश्य जीवंत हो उठा है।
कहानी और निर्देशन
फिल्म की कहानी और निर्देशन दोनों ही अपनी जगह उत्कृष्ट हैं। पट्रोकार्थ और दृश्य काव्यात्मक होते हुए भी वास्तविकता से जुड़े रहते हैं। फिल्म की पटकथा दर्शकों को बांधे रखने में सक्षम होती है और सीन की गति लगातार बनी रहती है। निर्देशन में रिशभ ने अपने नायक का जेल दिखाते हुए, दर्शकों को भ्रमण करने का मौका दिया है। कहानी में पौराणिकता और लोककथाओं का मिश्रण ही फिल्म को एक नए स्तर पर ले जाता है।
फिल्म के संदेश
कांतारा की कहानी में परंपरा और आधुनिकता का संघर्ष एक प्रमुख संदेश के रूप में उपस्थित है। फिल्म यह संदेश देती है कि हमें अपनी परंपराओं और विरासत का सम्मान करना चाहिए, और साथ ही समाज की उन्नति के लिए आधुनिक सोच भी अपनानी होगी। यह फिल्म एक परंपरागत सोच और नई पीढ़ी के नजरिये का मेल कराती है और दर्शकों को सोचने पर मजबूर करती है।
निष्कर्ष
अंततः, 'कांतारा' एक बेहतरीन फिल्म है जो दर्शकों को एक सांस्कृतिक और पौराणिक यात्रा पर ले जाती है। फिल्म की सिनेमाटोग्राफी, प्रोडक्शन डिज़ाइन, और अभिनय के साथ-साथ इसकी कहानी और निर्देशन भी अद्वितीय हैं। यह फिल्म एक सशक्त संदेश देती है और दर्शकों को सोचने पर मजबूर करती है। यह कहना गलत नहीं होगा कि 'कांतारा' एक यादगार और अद्वितीय अनुभव है जिसे हर सिनेमा प्रेमी को अवश्य देखना चाहिए।
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लोग टिप्पणियाँ
कांतारा की सिनेमाटोग्राफी ने मुझे बिल्कुल ही चौंका दिया। हर फ्रेम में तटीय कर्नाटक की जीवंतता झलकती है, जैसे जंगल की सांसें सीधे स्क्रीन पर आ रही हों। रिशभ शेट्टी ने अभिनय में एक ऐसा गहराई लाई है जो बहुत कम फिल्मों में मिलती है।
ये फिल्म बस एक लोककथा नहीं बल्कि एक जीवित प्रतिरोध की कहानी है जो आधुनिक भारत के दिल में बसती है
मैंने इसे अपने दादा के साथ देखा और वो रो पड़े। उन्होंने कहा ये वो दिन याद दिला रही है जब हम जंगल को भगवान समझते थे। फिल्म ने मेरे दिल को छू लिया।
ये सब बकवास है फिल्म में कुछ नहीं है सिवाय धुंधले दृश्यों और बेकार नाटक के और लोग इसे क्लासिक कह रहे हैं
अरे भाई, ये फिल्म देखकर मैंने सोचा-क्या हम अपनी परंपराओं को बरकरार रखने के बजाय, उन्हें एक बहुत बड़े डॉक्यूमेंट्री में बदल रहे हैं? रिशभ ने जो किया, वो एक बहुत ही खतरनाक बात है... बहुत खतरनाक।
मैंने फिल्म देखी और बस... 😭🌿 ये जंगल की सांसें मुझे अपने बचपन की याद दिला गईं। रिशभ ने जो भाव दिया, वो बिल्कुल जमीन से उठा हुआ था। बहुत बहुत बधाई 🙏
यह फिल्म, जिसे कुछ लोग आध्यात्मिक और सांस्कृतिक उत्कृष्टता के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं, वास्तव में एक नियंत्रित नैरेटिव का उपयोग करती है, जिसका उद्देश्य आधुनिक भारतीय समाज के भीतर एक अवैज्ञानिक और प्राचीन विश्वासों के प्रति भावनात्मक अनुग्रह को प्रोत्साहित करना है।
इस फिल्म को देखकर लगता है कि हमारे देश में अब सिर्फ लोककथाएँ ही बची हैं, और वो भी बाहरी दुनिया के लिए बेची जा रही हैं। हमारे विकास के बजाय ये सब बातें हमें अतीत में बांधे रख रही हैं। ये फिल्म भारत को एक जादूगर की तरह दिखाती है, जो विज्ञान को नहीं मानता।
मैंने इसे अपने छोटे भाई के साथ देखा, जो फिल्मों से बिल्कुल दूर रहता है। उसने अंत में कहा-'ये तो सच है ना?' उसकी आँखों में एक नई चमक थी। ये फिल्म बस एक फिल्म नहीं, एक शुरुआत है।
ये फिल्म राष्ट्रीय स्तर पर एक जानबूझकर फैलाया गया धोखा है। जंगल के देवता? ये सब एक नए धार्मिक नियंत्रण का हिस्सा है। आपको यकीन है ये फिल्म असली है?
मैं तो बस इतना कहूंगा कि जब शिवा ने जंगल में आग लगाई तो मेरा दिल टूट गया। मैं रो पड़ा। वो आग मेरे बचपन की यादों को जला रही थी। मैं अभी भी उसकी आवाज़ सुन रहा हूँ।
इस फिल्म के निर्माण में किसी ने भी वन संरक्षण अधिनियम, भूमि अधिग्रहण कानून, या जनजातीय अधिकारों के बारे में अध्ययन नहीं किया है। यह एक ऐतिहासिक अनुचितता है, जिसके द्वारा एक जटिल वास्तविकता को एक सरलीकृत नाटक में बदल दिया गया है।
दोस्तों, ये फिल्म सिर्फ एक फिल्म नहीं-ये एक जीवंत धुंधला गीत है जो जंगल की हवा, नदी के गीत, और एक युवा के दिल की धड़कन को बरकरार रखता है। रिशभ ने जो रंग भरे, वो तो मेरे खून में उतर गए। ये फिल्म देखकर मैंने अपने दादा की आवाज़ सुनी-'बेटा, जंगल नहीं, जीवन है।'
कांतारा? ये तो गुप्त गुप्त संगठन का ब्रांडिंग है! जंगल का देवता? बस एक ट्रेडमार्क जो बाहरी देशों को बेचने के लिए बनाया गया है। ये सब बहुत जानबूझकर है।