मामले की पृष्ठभूमि
जिले में सज़ा काट रहे कश्मीर के अलगाववादी नेता यासिन मलिक ने 25 अगस्त 2025 को दिल्ली हाई कोर्ट में एक विस्तृत हलफ़नामे दायर किया। उसमें उन्होंने दावा किया कि 2006 में उन्होंने पाकिस्तान में लशकर‑ए‑तायबा के संस्थापक और 26/11 के mastermind हफ़ीज़ सय्यद से मुलाक़ात की थी, और इस मुलाक़ात के बाद पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उन्हें व्यक्तिगत धन्यवाद दिया।
मलिक के अनुसार यह मुलाक़ात उसकी पहल नहीं, बल्कि भारतीय इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) के वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देश पर हुई थी। वह बताते हैं कि उस समय IB के स्पेशल डायरेक्टर वी.के. जोशी ने उन्हें इस मुलाक़ात के लिए भेजा, ताकि पाकिस्तान के साथ शान्ति‑प्रक्रिया के बैक‑चैनल संवाद जारी रखा जा सके।
हलफ़नामे में मलिक ने यह भी लिखा कि पाकिस्तान से भारत लौटने के बाद उन्हें IB के वी.के. जोशी ने होटल में मिलाकर तुरंत प्रधान मंत्री के साथ ब्रीफिंग करने के लिए कहा। ब्रीफलिंग के दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एन.के. नारायण और अन्य अधिकारियों को अपनी मुलाक़ात के विवरण सुनाए। इस ब्रीफिंग के बाद मनोहर सिंह ने उनके “प्रयास, समय, धैर्य और समर्पण” के लिए धन्यवाद कहा।
पार्टीयों की प्रतिक्रिया
बीजेपी ने इस खुलासे को ‘शॉकिंग’ करार दिया। पार्टी के IT प्रमुख अमित मालवीय ने हलफ़नामे की टेक्स्ट को ट्विटर और फेसबुक पर शेयर करके कहा, “यदि ये दावे सच हैं तो उपा सरकार की राष्ट्रीय सुरक्षा नीति और बैक‑चैनल कूटनीति पर गंभीर सवाल उठते हैं।” उन्होंने विशेष रूप से 2006 में हफ़ीज़ सय्यद से मुलाक़ात को ‘उत्पीड़न’ का प्रमाण बताया।
दूसरी ओर, कांग्रेस ने इस मुद्दे को उल्टा घुमा दिया। वह इंगित कर रहे हैं कि भाजपा और RSS ने भी जब वह सत्तारूढ़ नहीं थे, तब कश्मीर के अलगाववादी नेताओं से मुलाक़ात की थी। कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेरा ने अटल बिहारी वाजपेयी की अलगाववादी नेताओं के साथ बैठक का फोटो दिखाते हुए कहा, “यह BJP भी करती रही है, पर अब उन्हें हमारी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है।”
अभी यासिन मलिक जीवन भर जेल की सजा का सामना कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें डरावनी वित्तीय फंडिंग केस में दोषी ठहराया गया है। लेकिन उनका हलफ़नामे कई उच्च‑स्तरीय राजनयिक, केंद्रीय मंत्री और इंटेलिजेंस अधिकारियों के नाम भी लाता है, जो उस समय के शान्ति‑प्रक्रिया प्रयासों की जटिल तस्वीर पेश करता है।
यह खुलासा इस बात को उजागर करता है कि 2000‑के दशक की मध्यावधि में भारत‑पाकिस्तान संबंधों में कई गुप्त बातचीत चल रही थीं, जिनमें देश के शीर्ष नेताओं की भागीदारी थी। भाजपा इस बात को राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल कर रही है, जबकि कांग्रेस खुद को बचाने के लिए समान परिस्थितियों का हवाला दे रही है। अब देखना यह है कि यह विवाद न्यायालय में कैसे आगे बढ़ता है और राष्ट्रीय सुरक्षा की नीति पर क्या नई बहसें उत्पन्न होती हैं।
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लोग टिप्पणियाँ
इस हलफनामे में जो कुछ लिखा है वो सिर्फ एक अलगाववादी का बयान नहीं, बल्कि भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा की गुप्त इतिहास का एक टुकड़ा है। 2006 में जब देश बहुत अस्थिर था, तब IB के अधिकारी अलगाववादियों को बैकचैनल पर भेजना एक जरूरी रणनीति थी। ये सब बातें अब बाहर आ रही हैं क्योंकि राजनीति ने इसे अपना टूल बना लिया है। असली सवाल ये है कि अगर ये मुलाकात हुई तो उसके बाद क्या हुआ? क्या कोई रिपोर्ट बनी? क्या कोई जवाबदेही हुई? ये सवाल अभी तक बिना जवाब के पड़े हैं।
ये सब बकवास है। यासिन मलिक को जेल में डाल दिया गया था क्योंकि वो आतंकवाद के लिए पैसे जुटाता था। अब वो अपनी गलतियों को बचाने के लिए एक झूठी कहानी बना रहा है। इंटेलिजेंस एजेंसी जैसे लोग ऐसे लोगों के साथ बातें नहीं करते जो देश के खिलाफ काम कर रहे हों। ये सब बस एक गलत बयान है जिसे कोई राजनीतिक लाभ के लिए बढ़ावा दे रहा है।
मनोहर सिंह ने धन्यवाद दिया तो क्या हुआ? अब भी वो जेल में हैं।
देखो, ये जो हुआ वो सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि एक पैटर्न है। हमने हमेशा अलगाववादियों के साथ बातचीत की है, चाहे वो कांग्रेस हो या भाजपा। अब जब एक आदमी ने बता दिया कि उसे किसने भेजा था और किससे मिला था, तो लोग शॉक हो रहे हैं। लेकिन अगर ये बैकचैनल नहीं होते तो क्या आज हमारे बीच ये जंग नहीं होती? शायद ये सब एक नियमित तरीके से होता था, बस लोगों को नहीं बताया जाता था। अब जब ये बाहर आ गया है, तो लोग अपनी राजनीति के लिए इसे बड़ा बना रहे हैं। असली सवाल ये है कि अगली बार हम क्या करेंगे? क्या हम फिर से गुप्त बातचीत करेंगे? या फिर सब कुछ खुला कर देंगे?
यह बहुत गंभीर बात है। कोई भी आतंकवादी के साथ मुलाकात नहीं कर सकता। यह देश के खिलाफ षड्यंत्र है। जिसने भी यह बात की है, वह देशद्रोही है। इसके लिए कड़ी सजा होनी चाहिए। यह अपराध कभी माफ नहीं हो सकता।
सच तो ये है कि हम सब एक ही देश में रहते हैं। अलगाववादी या नहीं, सबके लिए शांति चाहिए। अगर 2006 में किसी ने शांति के लिए कोशिश की तो उसकी तारीफ होनी चाहिए, न कि उसे बदनाम किया जाए। ये जो आज लोग एक-दूसरे को बदनाम कर रहे हैं, वो सिर्फ राजनीति है। हमें अपनी बातचीत बंद करके बातचीत शुरू करनी चाहिए। 🤝