बजट सत्र की महत्ता और प्रधानमंत्री का बयान
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 जुलाई 2024 को बजट सत्र से पहले एक महत्वपूर्ण प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए विपक्ष पर तीखा प्रहार किया। उन्होंने आरोप लगाया कि संसद में विपक्ष ने उन्हें और उनकी सरकार को चुप कराने का पूरा प्रयास किया। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यह तरीका अनुचित है और इससे लोकतंत्र की मूल भावना पर चोट पहुंचती है।
मोदी ने इस बात पर जोर दिया कि आगामी बजट सत्र भारत की दिशा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। 2024 का बजट अगले पांच वर्षों के लिए भारत की नीति और योजनाओं का खाका खींचेगा, जो 2047 तक 'विकसित भारत' का मजबूत आधार बनाएगा। इस दृष्टिकोण में उन्होंने देश की आर्थिक वृद्धि को अहम बताया और इसे अवसरों के शिखर पर बताया।
उन्होंने कहा कि भारत की प्रगति और विकास के लिए यह महत्वपूर्ण है कि सभी राजनीतिक दल अपने मतभेदों को दरकिनार करके एक साथ काम करें। उन्होंने यह भी बताया कि उनकी सरकार जनता से किए गए वादों को पूरा करने के लिए समर्पित है और इस दिशा में तेजी से कदम बढ़ा रही है।
विपक्ष पर आरोप और संसद में गतिरोध
प्रधानमंत्री ने विपक्ष पर आरोप लगाते हुए कहा कि संसद में बार-बार रुकावटें डाली जा रही हैं, जिससे न केवल सरकार के कामकाज पर असर पड़ता है, बल्कि कई महत्वपूर्ण मसलों पर चर्चा भी नहीं हो पाती। उन्होंने कहा कि कुछ सदस्य अपने मुद्दे पूरी तरह से नहीं रख पाते हैं क्योंकि विपक्ष ने संसद को बार-बार बाधित किया है।
मोदी ने विपक्षी दलों की नकारात्मक राजनीति को भी आड़े हाथों लिया और कहा कि वे अपने विफलताओं को छुपाने के लिए संसद का समय बर्बाद कर रहे हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि यदि सभी दल मिलकर काम करें तो देश की जनता को इसका बहुत लाभ होगा और विकास की गति तेज होगी।
आर्थिक प्रदर्शन और सरकार की गारंटी
प्रधानमंत्री ने भारत की आर्थिक स्थिति पर विस्तार से चर्चा की और कहा कि देश अब आर्थिक अवसरों के शिखर पर है। उन्होंने कहा कि जहां एक ओर देश की आर्थिक व्यवस्था मजबूत हो रही है, तो वहीं उनकी सरकार द्वारा दिए गए गारंटी भी लागू किए जा रहे हैं।
मोदी ने इस बात को भी रेखांकित किया कि पिछले वर्षों में भारत ने अपने आर्थिक संरचना को सुधारने की दिशा में कई बड़े कदम उठाए हैं। उन्होंने कहा, 'हमारी नीतियां और योजनाएं देश की जनता के हित में हैं और उन्हें बहतर जीवन प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।' उन्होंने इस संदर्भ में बजट सत्र को निर्णायक बताया और कहा कि सभी को इसमें सकारात्मक योगदान देना चाहिए।
संसद में एकजुटता की अपील
प्रधानमंत्री मोदी ने समस्त राजनीतिक दलों से अपील की कि वे अपने सारे मतभेदों को परे रखकर संसद में एकजुटता दिखाएं और देश की उन्नति के लिए काम करें। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र की सच्ची भावना तभी प्रकट होती है जब सभी दल मिलकर राष्ट्रहित में काम करें।
मोदी ने कहा, 'यह समय है एकजुट होने का, साथ काम करने का और एक साथ एक नए भारत के निर्माण का।' उन्होंने कहा कि विभिन्न दलों के सदस्यों को अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करना चाहिए और संसद के सत्र को सफल बनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि सब मिलकर काम करेंगे तो 'विकसित भारत' का सपना जल्द ही साकार होगा।
वित्त मंत्री की भूमिका और बजट प्रस्तुति
प्रधानमंत्री ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारामन की तारीफ करते हुए कहा कि उन्होंने देश की आर्थिक वृद्धि के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने कहा कि 23 जुलाई को जब वित्त मंत्री बजट पेश करेंगी, तो यह एक ऐतिहासिक क्षण होगा क्योंकि यह बजट देश की दिशा तय करेगा और विकास का नया अध्याय लिखेगा।
उन्होंने कहा कि यह बजट न केवल आर्थिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह समाज के हर वर्ग को प्रभावित करेगा। उन्होंने कहा कि यह समय है जब हम सभी को मिलकर इस बजट सत्र को सफल बनाना चाहिए और देश की प्रगति की दिशा में मिलकर काम करना चाहिए।
अंत में, प्रधानमंत्री मोदी ने सभी सांसदों और राजनीतिक दलों से अपील की कि वे अपनी जिम्मेदारियों को समझें और संसद के सत्र को प्रतिपालन में सहायक बनाएं। उन्होंने कहा, 'हम सब मिलकर एक नई दिशा में कदम बढ़ाएं और 'विकसित भारत' के लक्ष्य को हासिल करें।'
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लोग टिप्पणियाँ
ye sab bhaiya ka drama hai...vopsho ke saamne koi baat nahi karta...par kya karein? sabko pata hai kya chal raha hai
India ki ummeed ab sirf ek budget par nahi, balki hum sabke saath ka miljul karne par hai. Ek naya India sirf laws se nahi, dil se banega.
PM ke baaton mein kuch bhi nahi hai jo humne nahi suna. Budget se pehle har baar yahi kaat kaat ke bolte hain. Kya hua pichle 9 saal mein?
Opposition ko chup karane ka matlab yeh nahi ki unki aawaz band ho jaye. Loktantra mein aawaz hona zaroori hai. Aur aapke government ke baare mein bhi kuch sawal khulne chahiye.
Sab ek saath chalo...ye sirf ek slogan nahi, zindagi ka rule hai 😊
Budget ke baad bhi inflation badhega. Sab kuch dikhane ke liye. Koi nahi dekhta jo ghar mein khana nahi hai.
Opposition ko kya samajhna hai? Humne 1000 crore ka health scheme banaya, unhone 1000 din tak sabko rok diya. Yeh democracy hai ya chaos? Bharat ki shakti sirf ek party ki nahi, poori sansad ki hai.
Aap bol rahe hain ki opposition chup kare...par jab aapne 2014 mein opposition ko 'sabki baat' kehte hue galiyan di thi, toh kya woh bhi chup hone ki aadat mein aaye? Hypocrisy ka naam hai yeh.
Ek baat sach hai - hum sab ek hi desh ke log hain. Agar sab apni apni jagah pe aaye, toh yeh budget sirf ek document nahi, ek naye zamane ka signal ban jayega.
Budget se pehle sab kuch bade bade shabd mein bolte hain. Phir budget aata hai aur kuch nahi milta. Log bas bhaagte hain.
Loktantra ka matlab hai vichar ka vishwas. Agar ek taraf hum kah rahe hain ki sabko bolne do, toh dusri taraf kisi ki aawaz ko chupane ki koshish karna...yeh ek antithesis hai.
Main dekhta hoon ki log kya chahte hain - naye schemes nahi, bas rozgaar, safe roads, aur bachon ke liye schools. Budget mein yeh sab kahan hai?
PM kehte hain 'viksit Bharat'...par hum toh abhi bhi 'vishwas' ke liye bhi nahi mil rahe 😅
It is imperative that the opposition respects the democratic process and refrains from obstructing the legislative agenda of the elected government. National interest must supersede partisan politics.
ye sab kuch fake hai...budget ke baad hi pata chalega ki kya hua...par main jaanta hoon...sab kuch bana ke dikhaya jayega...aur hum sab ko phir bhi bhookha chhod diya jayega
Agar opposition chup ho gaya toh kya hum sab khush honge? Ya phir sirf ek taraf ki aawaz sunai degi? Democracy mein sawal puchne ka haq bhi hai
Bas budget dikhao. Baat nahi.
The rhetoric of unity is a facade. The structural inequalities persist. The budget will be a document of financial engineering, not social justice. The narrative of 'developed India' is a distraction from the erosion of public institutions.